Saturday, July 2, 2016

लघु कथा : उदाहरण

                                                                                       - मिलन सिन्हा 


कम्पनी के प्रबंध निदेशक का अचानक क्षेत्रीय कार्यालय के निरीक्षण का कार्यक्रम दोपहर बारह बजे आया. 

क्षेत्रीय  प्रबंधक ने तत्काल कार्यालय के सभी कर्मचारियों को इसकी सूचना दी और सबको अपने–अपने कार्य को बिलकुल अद्दतन करने की हिदायत दी. बैठक के लिए कार्यालय के सभाकक्ष को साफ़–सुथरा एवं टीप-टॉप रखने का निर्देश भी दिया. इस काम की देख-रेख के लिए उन्होंने वरीय अधिकारी भास्कर साहब को विशेष हिदायतें भी दीं.

भास्कर साहब तत्क्षण इस कार्य में लग गये. उन्होंने पहले संबंधित सफाई कर्मचारी की खोज की. वह उस दिन आया ही न था. दूसरा सफाई कर्मचारी सुबह अपना काम करके जा चुका था. भास्कर साहब  ने इस स्थिति में कुछ अन्य वरीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों से इस संबंध में बात की. सबने पल्ला झाड़ लिया. 

प्रबंध निदेशक का अपराह्न चार बजे आने का कार्यक्रम था. दो बज चुके थे. भास्कर साहब  को कोई अन्य विकल्प नजर नहीं आ रहा था. 

लगभग तीन बजे  क्षेत्रीय  प्रबंधक स्थिति का जायजा लेने के क्रम में सभाकक्ष में आये तो यह देख कर स्तब्ध रह गये कि भास्कर साहब खुद सभाकक्ष की सफाई में तन्मयता से लगे हैं. सभाकक्ष साफ़–सुथरा एवं बैठक के अनुरूप हो चला था. यह सब देख कर क्षेत्रीय  प्रबंधक अभिभूत हो गये. उन्होंने भास्कर साहब से पूछा कि इतने वरीय अधिकारी होने के बावजूद भी वे ये सब खुद क्यों करने लगे, उन्हें क्यों नहीं बताया एवं अन्य लोगों का सहयोग क्यों नहीं लिया ?

भास्कर साहब ने क्षेत्रीय  प्रबंधक को पूरी पृष्ठभूमि की जानकारी दी और बिलकुल निःसंकोच होकर कहा, ‘सर, हमें ये  काम अपने घर में करने में कोई परेशानी तो नहीं होती है, फिर आज आवश्यकता  पड़ी  है तो इसे करने में संकोच कैसा ? इसके अलावे एक वरीय अधिकारी होने के नाते मुझे  ही पहल करनी थी.’ भास्कर साहब ने आगे कहा, ‘सर, आखिर यह दफ्तर भी तो हमारा घर ही है . हम यहां रोटी कमाते हैं और घर में खाते हैं.’

क्षेत्रीय  प्रबंधक  ने देखा कि यह सब कहते हुए भास्कर साहब का चेहरा उद्दीप्त हो उठा.  
                 और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

( लोकप्रिय अखबार 'हिन्दुस्तान' में 6 अगस्त, 1998 को प्रकाशित) 

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