Tuesday, August 12, 2014

राजनीति: राजनीति तो है ही संभावनाओं का खेल

                                                                                         - मिलन सिन्हा 
Displaying 11978735-0.jpgराजनीतिक कारणों से दलों का मिलना, उनके बीच चुनावी गठबंधन होना कोई नई बात नहीं होती है। बेशक दलों के नेताओं का  दिल से  मिलना चुनाव में ज्यादा असरकारी होता रहा है। बहरहाल, हम सभी जानते हैं कि  राजनीति संभावनाओं का खेल है। ऐसे में, मुख्य मंत्री जीतन राम मांझी ने अगले वर्ष होनेवाले विधान सभा चुनाव के बाद बहुमत मिलने पर नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने की बात कह भी दी तो सियासी भूचाल क्यों आ गया ?  जदयू में सबसे पावरफुल नेता तो वे  हैं ही। सच तो यह है कि जदयू में नीतीश से बड़ा नेता कोई नहीं। समझनेवाली बात है कि जिस दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष को मधेपुरा से लोकसभा चुनाव हारने के बाद नीतीश के बदौलत राज्यसभा में दाखिल होना पड़े, उस दल में अन्य नेताओं के राजनीतिक  प्रभाव का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। वह भी तब जब कि जदयू के अधिकांश बड़े नेता की छवि  चुनाव जीताउ वाली नहीं है। 

ऐसे भी विधान सभा चुनाव में देर है और संभावनाओं के खेल में  कब क्या हो जाय, कहना मुश्किल होता है। फिलहाल तो अपनी प्रथम प्राथमिकता के अनुरूप जदयू अपनी सरकार को  अगले चुनाव तक  बचाये रख सके, वही पार्टी नेतृत्व के लिये बड़ी उपलब्धि होगी। उल्लेखनीय है कि आने वाले कुछेक महीनों में बिहार की राजनीति में कमजोर जनाधार वाली कांग्रेस पार्टी के लिये खोने को कुछ नहीं है, वह भी तब जब लोकसभा चुनाव के बाद उसका  केंद्रीय नेतृत्व ही अवसादग्रस्त दिख रहा  है। कांग्रेस पार्टी अपने खोये जनाधार को थोड़ा समेट सके और विधान सभा में अपने विधायकों की  संख्या बढ़ा सके, वही उसकी कोशिश भी होगी एवं अन्तिम तात्कालिक लक्ष्य भी। हाँ, निश्चय ही अगला एक साल राजद नेतृत्व के लिये 'करो या मारो' वाला समय होगा। आसन्न उप चुनाव को वह इसी नजरिए  से देख रहा है, क्यों कि इसके फलाफल पर राजद  महागठबंधन का नेतृत्व करने की अपनी मंशा को पूरा कर पायेगी और अगले विधान सभा चुनाव में बड़ा रोल अदा करने का दावा कर  सकेगी। दरअसल, लालू प्रसाद के लिए अपने परिवार को केन्द्र में रखकर सत्ता की राजनीति में लौटने का यह  माकूल व बड़ा मौका है जिसे वे किसी भी हालत में भुनाना चाहेंगे जिससे खुद नहीं तो फिर अपने परिवार से ही किसी को  मुख्य मंत्री पद पर काबिज कर सकें।

जहाँ तक प्रदेश में एनडीए में शामिल सबसे बड़े दल भाजपा का सवाल है, वहां भी मुख्य मंत्री पद के कई दावेदार हैं जो प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से अपनी -अपनी मंशा का इजहार करते रहे हैं। कई राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि  अगर भावी मुख्य मंत्री के तौर पर  सुशील मोदी को प्रस्तुत किया जाता है तो यह  बिहार के जटिल सोशल इंजीनियरिंग की दृष्टि से मुनासिब लगता है। मुख्य मंत्री पद के लिये संभावित अन्य भाजपा नेताओं की बात करें तो नन्द किशोर यादव, रवि शंकर प्रसाद  तथा शाह नवाज हुसैन उपयुक्त लगते हैं। 

हालांकि, मौजूदा वक्त भाजपा के प्रादेशिक नेतृत्व के लिये भी  मोदी लहर से इतर अपने अन्तर्कलहों से निबटने, खुद को  तराशने की गंभीर चुनौती लेकर आया है। देखना होगा कि  इन चुनौतियों से पार पाते हुए यह पार्टी  2015 के विधानसभा चुनाव  में मुख्यमंत्री के रूप में एक सर्वमान्य चेहरे को सामने रखकर  खुद को एक समर्थ विकल्प के रूप में किस तरह जनता के सामने  प्रस्तुत  कर पाती है।

                    और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

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