Wednesday, August 20, 2014

राजनीति: बिहार का उपचुनाव - भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाना भाजपा के लिए भी मुश्किल

                                                                                           - मिलन सिन्हा 
 मुख्यतः जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर लड़े जा रहे इस उपचुनाव में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद जब मंडल से कमंडल को परास्त करने की बात जोर -शोर से करते हैं, तो क्या यह मान लेना चाहिए कि भ्रष्टाचार, मंहगाई, विकास आदि की राजनीति को नेपथ्य में  रखने की कोई सोची-समझी रणनीति है ? वह भी तब जब खुद बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा बताते हैं कि एक समय उन्हें भी बिजली बिल भुगतान के क्रम में रिश्वत का सहारा लेना पड़ा था और पूर्व मुख्यमंत्री ने भी माना है कि बिहार में पिछले कुछ वर्षों में तेज विकास  के साथ -साथ भ्रष्टाचार में भी इजाफा हुआ है। राजनीतिक प्रेक्षकों का यह कहना गैर मुनासिब नहीं है कि यदि  गठबंधन दल के रूप में भाजपा नीतीश सरकार के विकास का क्रेडिट लेना  चाहती है तो उस दौरान हुए भ्रष्टाचार में भी हिस्सेदारी की बात उसे करनी चाहिए। संभवतः यही कारण है कि दोनों गठबंधनों  में शामिल पार्टियां इसको उपचुनाव में बड़ा मुद्दा बनाने से बचना चाहती हैं।

 लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार को केन्द्र में रखकर सम्पूर्ण क्रांति का आन्दोलन चलाया जिसके परिणाम स्वरुप 1977 के आम चुनाव में केन्द्र की इंदिरा गांधी सरकार को पराजय का मुंह देखना पड़ा और केन्द्र सहित कई राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें सत्ता में आईं। यह इंदिरा गांधी ही थी जिन्होंने एक चर्चा के दौरान यह कहकर देश-विदेश में सनसनी फैला दी थी कि भ्रष्टाचार केवल देश में ही नहीं है, यह तो विश्वव्यापी है। बाद में अस्सी के दशक में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो राजनीतिक गलियारे में उन्होंने यह कहकर तूफ़ान मचा दिया कि आम जनता की भलाई के लिए सरकार द्वारा खर्च किये जाने वाले प्रत्येक रुपये में से सिर्फ 15 पैसे ही उनके काम आता है। 

                    और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

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