Tuesday, January 14, 2014

आज की कविता: धरती से कटने का 'सुख'

                                                   - मिलन सिन्हा
स्टेशन  थाना बिहपुर
जिला भागलपुर
रूकती  है गाड़ी असम मेल
मच जाती है धकम पेल
खुलती है गाड़ी
तेज होती रफ़्तार थोड़ी 
जाड़े का है मौसम 
पर उन टिकटधारी यात्रियों को 
जिनके शरीर पर कपड़े हैं कम 
नहीं कोई इसका गम 
चल रही है ठंडी हवा 
पर उन्हें नहीं इसकी परवाह 
इधर-उधर देखे बिना ही 
सीटें खाली रहते हुए भी 
सट-सट कर बैठ जाते हैं वे 
जमीन पर ही 
पूछता हूँ 
अपनी सीट के पास नीचे बैठे 
एक किशोर से उसका नाम 
वह शर्माता है, फिर बताता है,
'दिनेश कहार'
उम्र यही कोई ग्यारह साल 
गंगा की भटकती धारा से 
तबाह होने वाले इलाके 
नारायणपुर का निवासी 
जहां की जमीन 
सिंचाई सुविधा के अभाव में 
पड़ी है अब भी प्यासी 
वह बताता है 
उसके पास भी थी 
एक बीघा जमीन 
पर उसे भी 
नाप जोख में 
हड़प गया बूढ़ा अमीन 
देह पर उसके एक  फटा कुर्ता 
और एक नेकर डोरीवाला 
बटुए में है उसका टिकट 
गमछे में बंधा है चूड़ा और नमक 
गाँव में अपनी माँ और 
चार भाई बहनों को छोड़े 
जा रहा है वह पंजाब 
खोजने रोजगार 
पंजाब का नाम लेते ही 
चेहरे पर हंसी है, नहीं है उदासी 
लगता है अपनी जमीन से 
कटने में भी शायद 
कभी - कभी मिलती है  ख़ुशी !

                       और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं
# 'योजना' के 16 -31 मार्च '83 के अंक में प्रकाशित 

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