Wednesday, December 4, 2013

आज की कविता : देखा मैंने राजधानी में

                                                  - मिलन सिन्हा 
देखा मैंने राजधानी में 
आलीशान इमारतों का काफिला
और बगल में
झुग्गी झोपड़ियों की बस्ती
जैसे अमीरी -गरीबी
रहते साथ- साथ
दो अलग -अलग दुनिया में
सुविधाएँ अनेक इमारतों में
असुविधाएँ अनेक झोपड़ियों में
एक तरफ रातें रंगीन हैं
तो दूसरी ओर
सिर्फ कल्पनाएँ रंगीन हैं ,यथार्थ काला
ऊपर मदिरा में डूब कर भी
प्यासे हैं लोग
झोपड़ियों में पानी के लिए भी
तरस रहें हैं लोग
कितने ही ऐसे विरोधाभास
फिर भी, बस ऐसे ही
सालों -साल जिये जा रहें हैं लोग !

               और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं
 प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित

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