Saturday, June 8, 2013

आज की कविता : चक्रव्यूह

                                                                    - मिलन सिन्हा 
alone











दुनिया तो है एक मेला
पर, देखिये
इस मेले में आदमी
कितना है अकेला .
घिरा है भीड़ से
पर,
कैसे खोजें अपनों को
अजनबियों के बीच से .
भीड़ समस्याओं की भी
लगी है चारों ओर .
हर तरफ है
शोर ही शोर .
समस्याओं के एक चक्रव्यूह से
निकलते ही ,
दूसरे में फंस जाता है.
क्या करे, न करे
समझ नहीं पाता है .
मेले में है,
झमेले में है,
अपनों से बिछुड़े हुए
एक अबोध बालक की तरह .
चौराहे पर खड़ा,
किंकर्तव्यविमूढ़ !

# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :08.06.2013

                 और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं। 

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