Saturday, April 6, 2013

मोटिवेशन : मानसिक दबाव दूर करें और जीवन का आनंद लें

                                              - मिलन सिन्हा
विख्यात अमेरिकी दबाव प्रबंधन विशेषज्ञ श्री हंस सेले के अनुसार, किसी व्यक्ति पर, कार्यस्थल पर, दबाव डालनेवाले प्रमुख तत्वों में लक्ष्य प्राप्ति की अतिशीघ्रता (जो कई बार अतार्किक / असंभव होती है), अत्यधिक कार्य तथा निर्धारित समय सीमा का दबाव, आग्रही और आक्रामक नियंत्रक प्राधिकारी, अल्प निष्पादक तथा कभी - कभी गैर निष्पादक कनिष्ठ कर्मचारी, समकक्षों के बीच  प्रतिस्पर्धा, अत्यधिक यात्रा, घरेलू विसंगतियां आदि होती हैं। और सर्वोपरि तत्व के रूप में आज के समष्टिगत जीवन में बढ़ती हुई अनिश्चितता इस अत्यधिक दबाव को बढ़ावा दे रही है।

पहली चीज जो हमें निष्ठांपूर्वक करनी चाहिए वह है अपने को जानना। हमें आँख मूंद  कर दूसरों  की नक़ल नहीं करनी चाहिए। हमें आत्म-विश्लेषक होना  चाहिए और सकारात्मक सोच के माध्यम से, व्यक्तिगत सुधार  हेतु सतत तत्पर रहना चाहिए।

व्यवहार में दब्बू अथवा आक्रामक होने के बदले, यह हमेशा वांछनीय है कि हम निश्चयात्मक बनें। निश्चयात्मक होने से विश्वस्त, प्रौढ़, स्पष्टवादी, संतुलित, वस्तुपरक, प्रगतिशील, निर्णयात्मक, सक्षम, विनोदप्रिय, शांतचित्त और तार्किक होने की गुणवत्ता आ जाती है।

व्यक्ति को कभी भी आशा का परित्याग नहीं करना चाहिए, क्यों कि प्रत्येक परेशानी का  कोई - न- कोई कारगर इलाज अवश्य  है।

दबाव नियंत्रण के  लिए  अमेरिकी  मनोविज्ञानी श्री ई. एल. एलबर्ट  द्वारा विकसित किया गया  सुसंगत भावनात्मक सिद्धांत, कार्यपालकों द्वारा महसूस की जानेवाली कठिनाइयों को कागज़ पर लिख कर उनके हल के तार्किक उपाय प्रस्तुत करने का विवेचन करता है। इस प्रकार अनेक भावनात्मक कुहरे छंट जाते हैं और  समस्या से संबंधित वास्तविक तथ्य सामने आ जाता है।

कतिपय कारपोरेट एककों द्वारा दबाव को हल करने के लिए, त्रिआयामी  दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव दिया गया तथा उसका परीक्षण किया गया (१ ) जिन कर्मचारियों को उच्च स्तर का दबाव हो चुका  है और जिन्हें अनिद्रा की बीमारी हो गयी है और नर्वस होने के लक्षण प्रकट होने लगे हैं तथा अन्य मनोविकार उत्पन्न हो गए हैं - उनके लिए आरोग्यकारी उपाय  (२ ) वरिष्ठ - कनिष्ठ का खुला संजाल तैयार करके दबी हुई भावनाओं को निडरता से प्रकट करके उन्हें पूर्व स्थिति में लाकर निवारक उपाय (३) भारतीय मूल्यों द्वारा एकांत समर्थित एक संस्कृति विकसित करके विकासात्मक उपाय। कार्यपालकों के बीच आवधिक सप्ताहांत प्रकृति के खुले वातावरण में स्वतंत्र, स्पष्ट और आमने सामने होनेवाले विचार - विमर्श के द्वारा भी दबावों से मुक्ति पायी जा रही है।

इस  पर जोर देने की आवश्यकता नहीं है कि हंसी सर्वोत्तम औषधि  है। गांधीजी ने हंसी की अमूल्यता की प्रशंसा की है। ऐसा जान कर वे इस औषधि का उपयोग भी करते थे।प्रेक्षकों की यह स्पष्ट राय है  कि हंसी का समय तनावमुक्त होता है। परिवार के सदस्यों / दोस्तों के साथ फिल्मों / धारावाहिकों का आनंद  लेने से भी हम सामान रूप से तनावमुक्त  होते हैं। 

तनावमुक्ति में संगीत की भी अहम् भूमिका होती है।

मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए शारीरिक स्वस्थता नितांत आवश्यक है। जो चीज हमारे शरीर को प्रभावित करती है, वह हमारे मन को भी प्रभावित करती है। इसी तरह जो चीजें हमारे मन को प्रभावित करती है, उनसे हमारा शरीर भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। कतिपय विलम्ब से ही सही, किन्तु बहुत से कारपोरेट घरानों ने इसके महत्व को समझा है और अब वे अपने कार्यपालकों को तनाव मुक्ति की पुरातन प्रविधियों जैसे योग, ध्यान और प्रार्थना के प्रति आगाह कर रहे हैं। 

योग केवल व्यायाम नहीं है, बल्कि यह एक जीवन पद्धति है। वस्तुतः योग का अर्थ अंतरात्मा से विराट विश्व की एकता। ध्यान का प्रभाव हमारे शरीर और मन दोनों पर ही अत्यंत शामक रूप से पड़ता है। हममें से बहुत से लोग इस बात से अवगत हैं कि हमारे शक्ति का मूल स्रोत प्रार्थना की शक्ति में निहित है। पोषक और संतुलित आहार पर भी जोर दिया गया है।

इस सबसे एक ऐसे वातावरण का सृजन होता है, जिसमे आदमी का मानसिक दबाव पिघलता हुआ नजर आता है। इसके अलावा अगर हम अपने प्राचीन गौरवपूर्ण जीवन मूल्यों को पुनः कारपोरेट जीवन में अपना लें और अर्जुन की तरह जिएं कि " अपना कर्तव्य सर्वोतम रूप में करें और शेष को भूल जाएं", तो निश्चित तौर पर  धीरे - धीरे हमारा मानसिक दबाव अवश्य ही बहुत कम हो जाएगा और हम खुद को ज्यादा  स्वस्थ  व आनन्दित महसूस करेंगे 

( 'कादम्बिनी' के मई ,2002 अंक में प्रकाशित )
                                                
                         और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

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