Monday, January 14, 2013

आज की कविता : नजरिया

                                                        - मिलन सिन्हा
नजरिया
मैं
जब था
टुकड़ों में
बादलों की तरह
बिखरा हुआ
तब
कुछ लोग
उनकी छवि
उतार रहे थे
विभिन्न प्रकार की
कलाकृतियों की झलक
मिल रही थी उन्हें
पर
अब
जब  कि
ये टुकड़े  जुड़कर
एक हो गए  हैं
और
बरसने के लिए
गरजने  लगे हैं
तो
उन लोगों को
सिर्फ
बाढ़ की ही संभावना
नजर आ रही है !

('राष्ट्रधर्म ' में सितम्बर '80 में प्रकाशित )
                                                            और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

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